छात्रों को स्टार्टअप के लिए 2 करोड़ की फंडिंग दी चितकारा यूनीवर्सिटी ने – Shiksha Shetra

छात्रों को स्टार्टअप के लिए 2 करोड़ की फंडिंग दी चितकारा यूनीवर्सिटी ने

शिक्षा के क्षेत्र में जितनी महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षा संस्थानों की है उतनी ही उनकी दूरदर्शिता की भी है। वक्त के साथ बदलना और नए बदलाव को अपनाने से ही शिक्षा स्तर का बेहतर विकास हो सकता है. लाइव हिन्दुस्तान की एजुकेशन फाउंडर सीरीज़ के दूसरे एपीसोड में हम बात कर रहे है चंदीगढ़ स्थित चितकारा यूनीवर्सिटी की प्रो चांसलर डॉ. मधु चितकारा से।

1: नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आपके हिसाब से कैसी है?

इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने हमारी पढ़ाई में जो गैप आ जाते हैं वो भरे हैं. पहली चीज़ जैसे हमारे बैंक्स होते हैं वहां हमारा पैसा सेव हो जाता है. वैसा हमने एजुकेशन के साथ नहीं सोचा था. लेकिन अब हमारे पास एबीसी है यानि अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट. मान लीजिए अगर हमने लॉकडाउन के दौरान हम काफी फ्री थे, तो लोगों ने कई कोर्स घर बैठे आॅनलाइन किए. अब मान लीजिए कोई अगर कोई ऐसा कोर्स करता है जो की उसकी डिग्री में शामिल हो सकता है, तो उसे हमने कहा की ये एक एबीसी है. इतने क्रेडिट को बैंक में जमा कर दो और भविष्य में जब चाहो इस क्रेडिट को इस्तेमाल कर के अपनी डिग्री में जोड़ सकते हैं. ये काफी अनोखी पहल है. दूसरी चीज़ है की अगर आज आप किसी वजह से बीच में कोर्स छोड़ कर जाना चाहते हैं. मान लीजिए कॉलेज के एक साल बाद आपकी फैमिली में दिक्कत आई और आपको कोर्स छोड़ना पड़ा और आप दो साल या पांच साल बाद दोबारा आकर फिर से पढ़ना चाहते हैं तो आप उन्हीं क्रेडिट का इस्तेमाल कर के फिर से आगे की पढ़ाई शुरू कर सकते हैं.

2: एक व्यवसायिक पृष्ठभूमि से ना होते हुए एक यूनीवर्सिटी की शुरुआत करना कितना मुश्किल था? ऐसे में बतौर व्यवसायी और बतौर शिक्षिका आप अपने सिद्धांत और व्यवसाय का तालमेल कैसे बैठाती हैं?

मैंने और मेरे हस्बेंड 2002 में अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर राजपुरा में 220 बच्चों के साथ आपना कॉलेज शुरु कियाी चितकारा इस्टीट्यूट आॅफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलिजी और यही सोचा की इंजीनियरिंग कॉलेज ही चलाएंगे. हमारा कोई सपोर्ट नहीं था उस वक्त क्योंकि हम दिल्ली से आए थे तो हमने बैंक का रुख किया. मुझे याद है एक बार जब हमने शुरू किया था तब एक काउंसिलिंग चल रही थी, जिसमें पंजाब सरकार ने घोषणा की थी की करीब 50 प्रतिशत कोटा, मैनेजमेंट कोटा होगा. उस वक्त मुझे ये पता नहीं था की ये मैनेजमेंट कोटा क्या होता है. तो मैंने पूछा की ये क्या है तो उन्होंने बताया की आप इसमें अपनी तरह से फीस ले सकती हैं. तो मुझे लगा की छात्र से अलग अलग फीस लेना मुझे उस वक्त सही नहीं लगा और मैंने उसी वक्त स्टेज से बोल दिया की चितकारा में कोई भी मैनेजमेंट कोटा नहीं होगा. हमने पंजाब टेक्निकल यूनीवर्सिटी जिससे हम एफिलिएटेड हैं, उससे कहा की हमारी सारी सीट्स स्क्रीन पर डालो और चितकारा के सारे ऐडमिशन मेरिट पर ही होंगे. हमारे उस कदम की वजह से आज भी लोगों में वो कॉन्फिडेंस है चितकारा को लेकर की अगर बच्चा यहां जा रहा है तो वो डिज़र्विंग ही होगा और किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा.

3: छात्रों की स्किल डेवलपमेंट में चितकारा यूनीवर्सिटी बाकी संस्थानों से कैसे अलग है?

हमारे यहां पहले दिन से जब बच्चा आता है तो वो एक रिसर्च का भाग बन जाता है. हमारी दो यूनिट हैं एक है CURIN यानि चितकारा यूनीवर्सिटी आॅफ रिसर्च एंड इनोवेशन नेटवर्क और दूसरी है CEED यानि चितकारा एजुकेशन फॉर ऑन्ट्रप्रनोयरशिप डवलेपमेंट. जो छात्र रिसर्च या कुछ स्टार्टअप शुरु करना चाहता है तो इन दोनों डिपार्टमेंट में उनकी पूरी मदद होती है. जैसे अभी लॉकडाउन के दौरान ही हमने सिर्फ अपने बच्चों को ही नहीं पूरे भारत के कई बच्चों को करीब दो करोड़ की फंडिंग दी है, इस वजह से बच्चा हमारे पास आना चाहता है. दूसरा हमारे अंतर्राष्ट्रीय कोलैबोरेशन की वजह से. हमारे 45 देशों की 165 से ज़्यादा यूनीवर्सिटीज़ के साथ कोलैबोरेशन है. हम एक ग्लोबल वीक करते हैं, जिसमें अक्टूबर के महीने में 80 यूनीवर्सिटीज़ की फैकल्टी को अपने कैंपस में बुलाते हैं और अपने टीचर्स को उनका बडी यानि जोड़ीदार बना देते हैं. हम एक्सपर्टीज़ के हिसाब से अपनी फैकल्टी को उनका बडी बनाते हैं. मान लीजिए जो आईओटी यानि इंटरनेट आॅफ थिंग में एक्सपर्ट है वो आईओटी वाले का ही बडी बनेगा. फिर उस एक हफ्ते सब साथ वर्कशॉप करते हैं जिससे हमें काफी बेहतर रिज़ल्ट मिलते हैं, हमारे कई रिसर्च पेपर्स जिस पर प्रोफेसर काम करना चाहते हैं उसमें मदद मिलती है.